सीतामढ़ी। जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज ने श्रीराम कथा के छठे दिन माता सीता की परम प्रिय सखी वरारोहा के जीवन-चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिनकी कृपा से हम जैसे जीव में उच्च विचार, व्यवहार, आचार-विहार आता है वह सखी वरारोहा हैं। जिनके कारण भजन बल श्रेष्ठ होता है, वही वरारोहा है।
भजन कीर्तन से भगवान की प्राप्ति होती है। डा. खुशबू कुमारी ने जन्म लिए जानकी कर आई दर्शनवा गीत गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया तो गुरुदेव ने धन्य धन्य पुनौरा धमवा चलु कर आऊ दर्शनवा गाकर भक्तों को झूमा दिया। जगतगुरु के ज्ञान गंगा की अमृतधारा बह रही है। सभी गोता लगा रहे हैं।

सीताराम विवाह के एक करोड़ अस्सी लाख पचास हजार वर्ष पूरे हो गए हैं। फिर भी आज भी मिथिला में जमाई का वही स्वागत होता है। विवाह गीत, समधी गाली, रीति-रिवाज और परंपरा है। काफी आनंद होता है।एक संजोग है कि इस बार वैशाख शुक्ल नवमी मंगलवार के दिन ही पड़ रहा है जिस दिन माता सीता जन्म ली थीं। इस बार जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा।
माता सीता अष्टसहेलियों के साथ सोने के सिंहासन पर विराजमान हो प्रकट हुई थीं। मां सुनैना और महाराज जनक ने प्रार्थना की और वह बाल रूप में आ गईं। माता सीता पीली साड़ी पहनकर सोने के सिंहासन से धरती से प्रकट हुईं। अष्ट सखी का नामाकरण माता सीता ने खुद किया।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि जीवन भर जानकी नवमी को पुनौराधाम धाम में ही कथा कहूंगा। भगवत भजन से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। आहार शुद्धि की आवश्यकता है। हमें शाकाहारी बनना चाहिए। जो प्रभु को समर्पित करते हैं, वह ग्रहण करना चाहिए। जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज ने कहा कि हमने सर्वोच्च न्यालय में श्रीराम जन्मभूमि को लेकर साक्ष्य प्रस्तुत किया। रामजन्म भूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ और भव्य मंदिर बन रहा है।

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